अधुरी तो थी मैं पर तनहा नहीं,
रास्ते तो कई थे पर कोई मंज़िल नहीं,
तलाश थी खुद को पाने की,
अकेली थी पर टूटी नहीं।
अधुरी तो थी मैं पर तनहा नहीं,
अज़ीज़ तो कई थे पर कोई अपना नहीं,
सपने थे खुद की उड़ान के,
लड़खड़ाती थी पर गिरती नहीं।
अधुरी तो थी मैं पर तनहा नहीं,
खेलते तो कई थे पर कोई दोस्त नहीं,
ख्वाइश थी खुद को समेटने की,
बेहकती थी पर उलझती नही।
अधुरी थी पर तनहा नहीं।
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